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Friday, August 23, 2013

ओह भगत सिंह - बोल - Oh Bhagat Singh - Song Lyrics


ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह



तुने दी थी जान के बन जाये अच्छा हिंदुस्तान
पर ये नेता बेच के खा गए मेरा मकान और दुकान
तुने दी थी जान के बन जाये अच्छा हिंदुस्तान
पर ये नेता बेच के खा गए मेरा मकान और दुकान
एक बात पते कि कहता हूँ मैं बुरा ना गर तू मान
एक बात पते कि कहता हूँ मैं बुरा ना गर तू मान
व्यर्थ ही चला गया रे पगले तेरा बलिदान
व्यर्थ ही चला गया रे पगले तेरा बलिदान
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह


आज़ादी के बारे मे क्या सोचा था क्या हुआ
जागते हुए भी सोता है तेरे देश का युवा
दंगो ने बम धमाकों ने किसी के दिल को ना है छुआ
तभी तो सिंघ के सामने दहाड़ रहा है चुहा
तभी तो सिंघ के सामने दहाड़ रहा है चुहा
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह


स्वर्ग मे बैठा तू भी तो क्या क्या सोचता होएगा
मत देख वीरे धरती पर वरना दिल भी रोएगा
65 साल मे देश ने क्या पाया क्या खोएगा
तेरे सपनों के भारत का बीज कौन बोएगा
तेरे सपनों के भारत का बीज कौन बोएगा
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
की करा मैं तू मैनु दस भगत सिंह 

ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह

ओह.... ओओओ... ओह.... ओओओ...
तेरे तेरे तेरे तेरे तेरे तेरे तेरे तेरे


तेरे सपनों का भारत अब हम बनाएंगे
तुझको भी फक्र हो हमपर कुछ कर दिखाएंगे
हर खास होगा आम और हर आम का होगा नाम
माँ धरती की कोख से हम प्यार उगाएंगे


जीने का अधिकार भी होगा 
जीवन का सत्कार भी होगा
घर-ओ-बस्तियां फिर ना जलेंगी
हर दिल मे बस प्यार ही होगा



और किसी की नहीं ये मेरी ज़िम्मेदारी है
भारत बनने मे क्यूं ना हो सबकी हिस्सेदारी है
मुश्किल तो है राह पर इरादे भी है मज़बूत
बहुत हुआ अब फिर से हिंदोस्तान की बारी है
बहुत हुआ अब फिर से हिंदोस्तान की बारी है
बहुत हुआ अब फिर से हिंदोस्तान की बारी है

ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह
प्यारे भगत सिंह, हमारे भगत सिंह 
ओह भगत सिंह, भगत सिंह, ओह भगत सिंह

चैन से सोजा, क्यूंकी हम जाग गए
चैन से सोजा, क्यूंकी हम जाग गए
हम जब भी जागे दुश्मन पीठ दिखा कर भाग गए
चैन से सोजा, क्यूंकी हम जाग गए
हम जब भी जागे दुश्मन पीठ दिखा कर भाग गए
हम जब भी जागे दुश्मन पीठ दिखा कर भाग गए

Wednesday, August 14, 2013

Mujhpe karam sarkar tera

मुझपे करम सरकार तेरा
बिजली महंगी, प्याज़ महंगा, सब कुछ महंगा
जीना और मरना महंगा
सब कुछ है यहाँ महंगा, है यहाँ महंगा


एक दारू बोतल और इक चिकन
नहीं चला पाते पाँच साल किचन
तुझको वोट था दिया, अपनी ग़लती मैं समझ गया


तूने मुझको सताया, पग पग है रुलाया
मैं तो जग को ना भाया, तूने भी वापिस भगाया
जब भी तुझसे मिलने आया
मुझको उल्लू है बनाया, अर्थशास्त्र का पाठ पढ़ाया
अनाज गोदामों मे सड़ाया, मुझको कुछ भी समझ ना आया
मुझको कुछ भी समझ ना आया


मैं बेवकूफ़ नही हूँ, बेवकूफ़ नही हूँ, बेवकूफ़ नही हूँ, बेवकूफ़ नही
मैं बेवकूफ़ नही हूँ, बेवकूफ़ नही, मैं बेवकूफ़ नही हूँ


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Friday, January 18, 2013

बलात्कार करने वालों का, लिंग काट दो सालो का - आप अपनी राय बताएं


कल दिन मे जंतर-मंतर गया था अपना संदेश “बलात्कार करने वालों का, लिंग काट दो सालो का अपने सीने पर चिपका के।
वहाँ पर स्मिता नाम की एक महिला मिली और उन्होने कहा की ये सज़ा ठीक नहीं है, उनके तर्क थे, इससे जो बलात्कारी होगा वो कोई भी सबूत न छोड़ने के लिए लड़की को जान से मार देगा, ये सज़ा और अपराध को बढ़ावा देगी, ऐसा करना अमानवीय होगा, वगैरह।
ये संवाद एक तरफा ही रहा। वो किसी महिला संगठन की अधिकारी थी शायद इसलिए उन्हे सिर्फ बताने की आदत ही थी और वो मेरी बात सुन नहीं पाई।
मैं उनसे कहना चाहता था कि ऐसा कौन सा अपराधी है जो अपराध करने के बाद अपनी पीछे सबूत छोडना चाहता है (आप दामिनी दी के दोस्त कि गवाही को मान सकते है जिसमे उन्होने कहा कि उन छक्को ने उन्हे बस से कुचलने कि कोशिश की), तो ये कहना तो गलत है कि इस सज़ा से अपराध बढ़ेगा, अगर ऐसा है तो वो तो सज़ा को फांसी मे बदलने से भी हो सकता है, उम्र कैद करने से भी हो सकता है।
और जहां तक बात है अमानवीय होने की तो मेरा मानना है कि अमानवीय तो बलात्कार करना भी है। उस लड़की को जिसका बलात्कार हुआ होता है उसके साथ सारा समाज, हम लोग कैसा व्यवहार करते है ये किसी को बताने कि ज़रूरत नहीं है, उसे अछूत समझा जाता है, लोग सीधी नज़र से कभी नहीं देखते। ऐसे मे न्याय का अर्थ क्या होगा, सिर्फ किसी को सात साल की कैद दे देना ताकि वो फिर से अपनी मर्दांगी का जोश समाज को दिखा सके। उसके साथ कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे उसे दिन मे 4-5 बार तो याद आए उसने क्या किया है।
जिस दिन ये सज़ा अमल मे आई और 2 लोगो को दी गयी, सिर्फ 2 लोगो को, तो पूरे भारत वर्ष मे ऐसी घटनाओं को अंजाम देने से पहले किसी मंत्री का कपूत भी सोचेगा।
ये मेरा मानना है, आप अपनी राय बताए।

Thursday, November 22, 2012

Kasaab ki maut - कसाब की मौत

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२६ नवंबर २००८, एक बुधवार
२१ नवंबर २०१२, एक और बुधवार
ये मच्छर सही मे बहुत आलसी होते है। सालो ने 155 हफ्ते लगा दिये सही बंदा खोजने मे।
आज जो हुआ उससे मेरा मन अति प्रफुल्लित है मैं ऐसा तो नहीं कहुंगा क्योंकि १५० परिवारों की ज़िंदगी खराब करके 

अगर मौत मिल भी गयी तो क्या है?
उसे एक राष्ट्रीय धरोहर की तरह सम्भाल के रखने वाली मेरी सरकार के मन मे ना जाने क्या निकलवाने चाह थी उस चूज़े से के उसने कई करोड़ रुपये लुटा दिए जो कि सही मायने मे हमारे हक़ के थे।

पर मैं वारी वारी जाऊं उस परम पूजनीय श्री श्री 1008 मच्छर खान पे जिसने मेरी जेब से निकलने वाले और पैसे को बचा लिये। इस मच्छर के लिये तो मेरा कह्ने का मन कर रहा है "मैं भी मच्छर, तू भी मच्छर, अब तो सारा देश है मच्छर"
अब कईओं के मन मे सवाल आयेगा के सरकार ने तो फांसी दी है तो सब डेंगू से मौत क्यूं कह रहे है। पूरी तरह से आश्वस्त तो मैं भी नही हूँ किसी एक को लेके पर इस धोखेबाज़ सरकार पर विश्वास करने का मन नही कर रहा इसीलिए मैं डेंगू वाली बात को ही सच मान रहा हूँ जिसके लिये मैं यहाँ कुछ बातें रखता हूँ:
१. सबसे पह्ला तो ये कि कसाब के वकील ने भी कहा के उसे तक को कसाब का डेथ वारंट नही दिया गय, जो की आप भारतीय दंड सन्हिता के मुताबिक कर नही सकते।
२. दूसरा यह के उसके खाने पीने और मूतने हगने तक की खबरें जब मीडीया मे आ सकती है तो उसकी फांसी की सज़ा को कोई कैसे छुपा सकता है।
३. तीसरा शक यह है के अभी तक जो सरकार कसाब के मुद्दे पे मुँह तक नही खोलती थी उसने ईतनी जल्दी ये सब कैसे और क्यों किया।
बाकी आप लोग खुद् ही समझदार है। खोद डालिये सच्चाई को।
वैसे मैं तो अब से बुधवार के व्रत रखना शुरू करने वाला हूँ।
जय इंसान, जय हिंदुस्तान

Monday, November 19, 2012

Arvind Kejriwal – हमारे नेताजी



अरविंद केजरीवाल – हमारे नेताजी
अगर मुद्दे मे दम लगे तो इसे साझा करना ना भूले और कृपा करके इस लेख को किसी की भी खिलाफत ना मान कर मेरी निजी राय माना जाये.
पता नहीं इस आंदोलन मे सब अरविंद केजरीवाल को ही क्यों पूछ्ते है? अखबार उठाओ तो उनके बारे मे लिखा होगा, बुद्धु डब्बा चलाओ तो उनके साक्षात्कार आ रहे है, किसी नये मुद्दे का पर्चा आए तो लिखा होता है “आपका अरविंद केजरीवाल”. इस लेख के द्वारा मैं इस बाबत चर्चा करना चाहूंगा के क्या एक आदमी पर इतनी निर्भरता ठीक है या क्या केवल एक ही आदमी को हर जगह आगे करना या पूरे आंदोलन का चेहरा बना देना एक न्यायपूर्ण स्थिति है?
सबसे पहला तथ्य मैं यहां पर यह रखना चाहूंगा के १९७५ के दौर मे जो तख्तापलट की लड़ाई चल रही थी उसमे भी एक ही चेहरा सामने दिखता था, जय प्रकाश नारायण, जिसने खुद को तो सत्ता से दूर रखा लेकिन सब लोगों के मार्गदर्शक बने रहे. पर जैसे ही उनका देहांत हुआ, अच्छी खासी बनी बनाई सरकार गिर गई और फिर से भारत देश की बागडोर उसी दल के हाथ मे चली गई जिसके मार्गदर्शक मोहनदास गांधी ने आज़ादी मिलते ही उस दल को खत्म करने की बात कही थी।
इसी कड़ी मे आप बात सुभाष चन्द्र बोस की भी कर सकते है जिन्होंने बखूबी अंग्रेज़ो के दांत अपनी आज़ाद हिंद फौज के द्वारा खट्टे किये थे पर उनके बाद उस फौज का सेनापति कोई नही था जिसका परिणाम हम सब जानते है। बेड़ा गर्क पार्टी क्यूँ टिकी हुई है क्यूँकि उनके पास चाचाजी का विकल्प दादीजी थी, दादीजी का विकल्प बेटाजी थे और बेटाजी का विकल्प बहूजी। कल को भगवान भला करे और बहूजी को कुछ हो जाए तो उनका विकल्प तो सचिन तेंदुलकर है ही। अब तो सुना है के भांजेजी को भी अभी से तैयार किया जा रहा है।
अब मैं ये नही कह रहा की सारा केजरीवाल परिवार ही देश सेवा मे कूद पड़े पर, यहां पर मेरा यह कहना है एक ही आदमी पर निर्भर होना बहुत ठीक बात नही है और अरविंद के संगठन को, अगर वो सही में देश का कुछ भला करना चाहते है तो, कोशिश करनी चाहिए के वो अपने जैसे लोगों को हर लोक सभा स्तर पर, हर विधान सभा स्तर पर और नगर पालिका वार्ड स्तर पर खोजें। अब यहाँ पर उनसे जुड़े हुए लोग ये कह सकते है के ऐसी मेहनत पहले से ही चल रही है पर क्युंकि मैं भी अन्ना अरविंद की इन मुहिमों से निरतंर जुड़ा हुआ हूँ तो मैं ये कह सकता हूँ कि अभी जो काम चल रहा है वो हर स्तर पर अपने आने वाले नए राजनीतिक दल की तैय्यारीओं को लेकर चल रहा है, इसमे कहीं भी स्तरीय नेता खोजने की बात नहीं है, अभी का हर फैसला सिर्फ अरविंद के हाथों मे ही होता है। अभी हर स्तर पर अरविंद का समूह बनाने की तैयारी हो रही है, अरविंद बनाने की नहीं।
दूसरी बात ये कि अरविंद जो बात करते है कि हमारे दल मे आलाकमान कोई नहीं होगा, हर इलाके को उसके फैसले खुद करने का हक़ होगा। तो क्या इसके लिए ज़रुरत नही है स्तरीय नेताओं को खोज निकालने की जो अपनी स्तरीय समस्याओं और ज़रुरतों को समझ के अपने क्शेत्र से जुड़े लोगों का उनके तरीके से नेतृत्व कर सके और वो भी बिना अरविंद केजरीवाल से पूछे।
अब हर स्तर पर जो अरविंद केजरीवाल बनेंगें तो उससे मुख्य समूह (गाज़ियाबाद वाला) जो इस वक़्त पूरे देश की अगुवाई मे लगा है उसकी छवि तो थोड़ी धुंधली होगी पर भारत के लिए जो सपना वो लोग देख रहे उसे पूरा करने मे खूब बल मिलेग। हाँ, सुपरवाइसरी का अधिकार वो अपने पास सुरक्षित रख सकते है।
समस्याऐं और भी है जो मैं यहाँ पर देख सकता हूँ, उनमे सबसे महत्वपूर्ण है अरविंद की सुरक्शा जिसे वो आए दिन ललकारते रहते है, इसके बारे भी उन्हे वर्तमान समय मे सोचने की ज़रुरत है, आने वाले समय मे वो राजनीतीग्यों की सुरक्षा को लेकर वो क्या इंतज़ाम करने वाले है वो उस समय के हालातों के हिसाब से ज़रूर ठीक होगा पर आज की स्थिति मे वो जचता नही है। 
बाकी आप लोग खुद ही खूब समझदार है, सोच लिजिये किस तरह का भारत आप चाहते है और उसके लिए आपके किन प्रयासों की ज़रुरत पड़ेगी।
सोचते रहिए। जय इंसान, जय हिंदुस्तान।

Thursday, November 15, 2012

Amitabh Bachchan - सच



अमिताभ बच्चन जैसा होना चाहिये इंसान को, सब से बना के रखने वाला, कांग्रेस को भी अपने जन्मदिन पर बुलाता है, अमर सिंघ से भी जेल मे मिलने जाता है, मुकेश अंबानी की दावतों मे भी शरीक होता है, विलास राव देशमुख गुज़रते है तो शोक व्यक्त करते है, ठाकरे बीमार होते है तो उनसे भी उनके घर तक मिलने जाता है और चोट भी खाता है। दीवार, खाकी, लक्ष्य जैसी पिक्चर बनाता है ताकि लोगों मे थोड़ी देशभक्ति जागे। अपनी हर पिक्चर के बाद जनता का धन्यवाद भी करता है।
पर वही जनता जब अपनी परेशानी को लेकर सड़कों पर आती है, तब ये साहब कुछ भी नही बोलते, कोई मंत्री घोटाला करता है तो इनका ट्विटर का पंछी हवा मे उड़ जाता है, लोग भूखे बैठते है तब ये पोते पोतियाँ खिला रहे होते है, अरे ये सच्ची मे बहुत बड़ा महानायक है भाईओं जो हमारे सामने ही ये सब करता है और हमे कुछ पता नही चलता।



क्यूँ उनका नाम बोफोर्स घोटाले मे भी आता है, क्यूँ वो सिर्फ ऐसे सामाजिक कार्यों मे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते है जहाँ से समाज का कुछ खास भला नहीं होने वाल, क्यूँ वो अपने समर्थकों और प्रशंसकों से नही कह्ते की वो भष्टाचार का विरोध करे, क्यूँ वो विदभ्र मे मर रहे किसानो के बारे मे मौन रह्ते है।
मुझे कुछ खास झट्का नही लगेगा अगर कल को अरविंद केजरीवाल के किसी खूलासे मे बड़े बाऊजी का नाम भी आ जाये।
मुझे पता है के मेरी इन बातों किसी को कुछ फर्क नही पड़ेगा पर फिर भी मैं इस महान देश के सभी महान एवं प्रतिष्ठित लोगो से विनती करना चाहूंगा के सिर्फ महान और खास लोगों की बातें छोड़ कर आम लोगों पर भी थोड़ा ध्यान दें और देश की बातें करें।
वैसे दीवार और लक्ष्य दोनो पिक्चरें थी बहुत बढिया।
अगली बार मैं सचिन तेंदुल्कर के बारे मे लिखूंगा।
जय इंसान, जय हिंदस्तान

Monday, October 29, 2012

Rape - बलात्कार

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मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है के कृपया इस लेख को खूब बाँटे, चाहे अपने नाम पे ही सही.

लगता नही के वो समय ज़्यादा दूर है जब इन प्यारी प्यारी 
बच्चीओं जिनके हाथो मे फूल होने चाहिए उनके माँ-बाप द्वारा तलवारे थमा दी जाएँगी और फिर खबरें ये नही आएँगी, कि गुड़गाँव मे एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार या भिवानी मे एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म.
फिर खबरें ये आनी शुरू होंगी कि एक महिला के साथ दुष्कर्म की कोशिश करते पाँच नौजवानो ने गँवाई अपनी जान या नाबालिग ने अपनी आबरू के लिए तलवार अपने पिता के रूबरू की.
मज़ा तो तब आएगा जब खबरें ऐसी होंगी के दो औरतों ने मिलके एक लड़के के साथ . . . . .
और फिर मैं देखना चाहूँगा के कौन सी खाप कहती है की लड़को को बुरखा पहन के बाहर निकलना चाहिए, या उनकी इज़्ज़त बचाने के लिए उनकी शादी १५ साल की उम्र मे ही करा देनी चाहिए.
फिर कांग्रेसी नेता ये भी नहीं बोलेंगे के आपसी सहमति से होता है बलात्कार या चोमीन बर्गर खाने की वजह से बढ़ी है बलात्कार की घटनायें.
"अब भी वक़्त है ज़रा संभाल जा ओ दुनिया,
खूनी खेल की बारी आई, तो पीछे हम भी ना होंगे."

Sallu aur Chui mui - सल्लू और छुई मुई



दोस्तों, सल्लू मियाँ के विकलांग घोटाले पर बनाया गया आपका नवीनतम हास्य व्यंग. पढ़िए, देखिए, हँसिए और बांटिए.
आम आम आम आम आम आम आम आम आम आदमी का खून पी जाए वो है सल्लू
विक विक विक विक विक विक विक विक विक विकलांगो का पैसा खाए वो है छुई मुई
अरे ट्रस्ट बनाई के, क़ानून बताई के, लूट लेहो इंडिया को ठेंगा दिखाई के
क़ानून के मंत्री है, भ्रशटों के संतरी है, इनके राज मे देखो प्रजा की ना कोई तंत्री है
आम आम आम आम आम आम आम आम आम आदमी का खून पी जाए वो है सल्लू
विक विक विक विक विक विक विक विक विक विकलांगो का पैसा खाए वो है छुई मुई
सल्लू और छुई मुई, सल्लू और छुई मुई, इन दोनो की जोड़ी भ्रष्ट है, देती दुनिया को ये कष्ट है ओ हो, ओ हो
सल्लू और छुई मुई, सल्लू और छुई मुई, इन दोनो की जोड़ी भ्रष्ट है, देती दुनिया को ये कष्ट है ओ हो, ओ हो

चली रे चली रे, लूटने की है बीमारी, सारे नेताओ को प्यारी यारी, जहाँ भी लूट होगी, कांग्रेस्स भाजपा की भागेदारी
आम आम आम आम आम आम आम आम आम आदमी का खून पी जाए वो है सल्लू
विक विक विक विक विक विक विक विक विक विकलांगो का पैसा खाए वो है छुई मुई

हो लूटने के मज़े बड़े, मज़े बड़े, चम्चे कतारो मे खड़े, देखो खड़े
देखो कहीं विकलांगो को बेच खाए, दोनो यही, अपने घर मे जशन मनाए,
और फिर तो ये तुमपर ही ना केस चलाए, बच के रहना
आम आम आम आम आम आम आम आम आम आदमी का खून पी जाए वो है सल्लू
विक विक विक विक विक विक विक विक विक विकलांगो का पैसा खाए वो है छुई मुई
सल्लू और छुई मुई, सल्लू और छुई मुई, इन दोनो की जोड़ी भ्रष्ट है, देती दुनिया को ये कष्ट है ओ हो, ओ हो
सल्लू और छुई मुई, सल्लू और छुई मुई, इन दोनो की जोड़ी भ्रष्ट है, देती दुनिया को ये कष्ट है ओ हो, ओ हो

हो तुमको गटर का कहें, गटर का कहें, इनकी चोरी पे चुप ना रहे गर तुम चुप ना रहे,
जाने कहा लेके जायें इतना पैसा, दोनो यहाँ, खाते खाते खाते जायें, अब हम इनको अपनी भी औकात बताए, एक का इस्तीफ़ा और दूसरे को जैल कराए, और इन्हे बताए हम क्या है
हम है आम आदमी, हम है आम आदमी, हम जो चाहे कर दिखाएँ, तुम्हे तुम्हारी औकात बतायें, ओ हो, , हो

सौजन्य से : गीत 'बंटी और बबली', पिक्चर 'बंटी और बबली'

Thursday, October 25, 2012

Sheela Bai - शीला बाई

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मैं दिल्ली की मुखिया हूँ, हूँ सबसे बड़ी कसाई, तुमको क्या लगता है मैं, कम करूँगी महंगाई,
बिजली दाम बढ़ाने मैं हूँ आई, हो.. पानी दाम बढ़ाने मैं हूँ आई,
कहते हैं मुझको शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई...

बिजली दाम बढ़ाने मैं हूँ आई, हो पानी दाम बढ़ाने मैं हूँ आई..
कहते हैं मुझको शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई...

समझे क्या हो नादनो, मुझको भोली ना जानो, मैं हूँ दिल्ली की रानी, तुम नहीं दूँगी मैं पानी,
तुमसे मैं रोटी छीनु, तुम्हारे घर की ज्योति छीनु, तुमको मैं राज़ बता दू, हर घर मे आग लगा दूं,
आग लगा दूं हाँ हाँ लगा दूं आग लगा दूं,
लोगों जो तुमको रोटी मिल पाई, जनता जो तुमको रोटी मिल पाई,
कहते हैं मुझको शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई...

बिजली दाम बढ़ाने मैं हूँ आई, हो पानी दाम बढ़ाने मैं हूँ आई..
कहते हैं मुझको शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई शीला बाई...

फिर जनता भी जवाब देती है..
अब आ गये है चुनाव, अब खेलेगी जनता दाव, जनता के हाथो मे ताक़त, अरविंद है तेरी आफ़त,


उसको ही जिताएँगे, तुझको हम बतलाएँगे, जनता जब मारे फटके, जाए ना कोई बचके,
ओ हो बचके हाँ हाँ जी बचके ओ हो बचके..
बिजली दाम बढ़ाने ना तू है आई, हो पानी दाम बढ़ाने ना तू है आई..
अब कहेंगे तुझको शीला bye शीला bye शीला bye शीला bye शीला bye शीला bye…

सौजन्य से : गीत 'हवा हवाई', पिक्चर 'मिसटर इंडिया'

Thursday, October 11, 2012

S&P threat to downgrade India's rating - भारत की साख पर फिर सवाल, S&P घटा सकती है रेटिंग

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एक दुकान मे एक दुकानदार होता है और पाँच नौकर होते है.
दुकानदार जिसका नाम जिन्तुजान, बहुत ही नेक दिल, शरीफ पर होशियार होता है.
नौकरों का एक नेता होता है, अक्तिका, बड़ा ही चापलुस, बिल्कुल गैर वफ़ादार, कभी मौका मिले तो मलिक को दुकान से बाहर करके खुद उस दुकान पर अपना क़ब्ज़ा करले.
बहुत साल बीत जाते है, कई नौकर आते है, मालिक के साथ मिल के तरक्की करते है और चले जाते है, पर अक्तिका वहीं का वहीं रहता है. अब एक समय ऐसा आता है के मालिक के घर मे कुछ दिक्कतें आनी शुरू हो जाती है, कभी मालिक की बीवी कहती है के अक्तिका को हद से ज़्यादा सर पे मत चढ़ाओ, कभी मालिक का बेटा कहता है के मेरे साथ आप सौतेला व्यवहार करते हो, कभी मालिक का भाई कहता है के ग्राहको को हद से ज़्यादा ना लूटो, उन्हे ठीक से माल दो. 
इस सब की भनक अक्तिका को लग जाती है, और वो इस मौके को भुनाना शुरू कर देता है. कभी तो कहे के मेरे भाई भतीजे को ही अपनी दुकान मे नौकर रखो, कभी दूसरे आने वाले नौकरो को बताए, के यह मालिक अच्छा नही है, तनख़्वाह नही देता, कभी मालिक की बीवी को समझाए के वो अच्छा है. और इस तरीके से सबको अपने वश मे करके एक दिन दुकान पर पाँचो नौकर उसी के घर परिवार के और मालिक को लात मार के दुकान-ओ-घर से बाहर कर दिया. और मालिक बेचारा सोचता रहा के काश, बीवी की सुन लेता, काश भाई की सुन लेता.
जिन्तुजान यहाँ पर हिन्दुस्तानी सरकार को जताते है, अक्तिका यहाँ पर अमरीकन सरकार को जताता है, बीवी सरकार के विरोधियों को, बेटा राज्य सरकारों को और भाई समाज सेविओ को.

एक अमरीकी कंपनी भारत की सरकार को कहती है के अगर तुमने हमे अपने देश नही बेचा तो हम तुम्हारी रेटिंग गिरा देंगे और फिर तुम्हारे देश मे कोई नही आएगा.

अरे इन नालयकों को समझाओ के हमारे देश को खरीदने का दम एक अमरीका मे तो क्या, १० अमरीको मे भी नही है.
हम नही चाहते तुम यहाँ आके धंधा करो, तुम चाहते हो यहाँ आके धंधा करना, कभी हिलरी क्लिंटन को भेजते हो, कभी ओबामा को भेजते हो, कभी S&P को भेजते हो.
पर तुम्हे क्या लगता है, तुम यूँ हमारे बेबस मौन नेता पे दबाव बना के, इटली वालों को हमारे यहाँ भेज के, हमे खरीद लोगे.
जब तक इस देश मे अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास और रामदेव जैसे देशभक्त लोग है, तब तक तुम्हारा ये सपना हम कभी पूरा ना होने देंगे.
जय इंसान
जय हिन्दुस्तान

Kis kis ka virodh karun main : इसपर करो उसका विरोध, उसपर करो इसका विरोध


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इसपर करो उसका विरोध, उसपर करो इसका विरोध
अब क्या करूँ, चुप भी तो नही बैठ सकता क्यूंकी चुप हो गया तो ये लोग मुझे भी बेच के खा जाएँगे, और फिर तो मैं विरोध करने लायक भी नही बचूँगा.
डी. ल. एफ. को ज़मीन की बंदर बाँट मे हरियाणा की खांग्रेस्स हुड्डा सरकार का विरोध करो
विकलांगो की ट्रस्ट की डोनेशन को खा जाने पे खुर्शीदों का विरोध करो
कोयला बाँटने पे देश के सरदार का विरोध करो
देश भर मे महंगाई बढ़ रही है तो केंद्र सरकार का विरोध करो
15 साल मे लड़की की शादी के फ़ैसले पर हरियाणा के खाप और पूर्व मुख्य मंत्री का विरोध करो
रीटेल मे एफ. डी. आइ. का विरोध करो
दिल्ली मे बिजली और पानी के रेट बढ़ा दिए तो शीला का विरोध करो

देश के समस्याओं से निकलो तो बाहर कौन सी कम है
पाकिस्तान और आफ्गानिस्तान मे तालिबनिओन का विरोध करो
अमेरिका मे वालमार्ट का विरोध करो
लंडन मे डो जोन्स का विरोध करो
क्या ये लोग अपने सब कामो को सही सही तरीके से नही कर सकते

अब तो घर पे मा रोटी लेके आती है तो लगता है उसका भी विरोध करूँ
पिताजी कुछ सलाह देते है तो लगता है उसका भी विरोध करूँ
दोस्त जन्मदिन मनाने आते है तो लगता है उसका भी विरोध करूँ
बॉस कोई काम बोले तो लगता है उसका भी विरोध करूँ
अब क्या करूँ, चुप भी तो नही बैठ सकता क्यूंकी चुप हो गया तो ये लोग मुझे भी बेच के खा जाएँगे, और फिर तो मैं विरोध करने लायक भी नही बचूँगा. इसलिए मैं तो अपना विरोध जारी रखूँगा.
जय इंसान
जय हिन्दुस्तान

Wednesday, October 3, 2012

Aam Aadmi Geet by Rishabh Nag

ऑडियो के लिए: आम आदमी गीत - MP3
वीडियो के लिए: आम आदमी गीत - Video

आम आदमी गीत - बोल


जब मैं जिधर जाऊँ
दुखड़ा मैं सुनाऊं
अब मैं किधर जाऊँ
किसको क्या बताऊँ
जब मैं जिधर जाऊँ
दुखड़ा मैं सुनाऊं
अब मैं किधर जाऊँ
किसको क्या बताऊँ

बड़ी बेचैनी है
बड़ी परेशानी है
दुखती कहानी है
अपनी ज़बानी है
बड़ी बेचैनी है
बड़ी परेशानी है
दुखती कहानी है
अपनी ज़बानी है

आम आदमी है
परेशान आदमी है
हैरान आदमी है
भाई मेरे
आम आदमी है
परेशान आदमी है
हैरान आदमी है
भाई मेरे

जब मैं जिधर जाऊँ
जब मैं जिधर जाऊँ
दुखड़ा मैं सुनाऊं
दुखड़ा मैं सुनाऊं
अब मैं किधर जाऊँ
किसको क्या बताऊँ

बंदी तो फॅशन है
महंगाई जीवन है
रो रो के दिल
तौबा करे
बिजली ना पानी है
खाना ना राशन है
हम तो भयि ऐसे 
भूखे मरे

कैसी मनमानी है
ये बेईमानी है
सबने ठानी है
दुश्मन जानी है
कैसी मनमानी है
ये बेईमानी है
सबने ठानी है
दुश्मन जानी है

आम आदमी है
परेशान आदमी है
हैरान आदमी है
भाई मेरे
आम आदमी है
परेशान आदमी है
हैरान आदमी है
भाई मेरे

कभी मैं उधर जाऊँ
कभी मैं इधर जाऊँ
अब मैं किधर जाऊँ
किसको क्या बताऊँ

In memories of Pramod Sir
A film by Dhappa Animation & Lets Fly
Directed, Written & Performed by Rishabh Nag
Produced by Dhappa Animation
Story by Nisha Singh
आप कलाकार को अपना आभार व्यक्त कर सकते है : rishabhnag2007@gmail.com

Monday, September 24, 2012

Anna ki rahein - अन्ना की राहें


पता नही क्यूँ मन मानने को तैयार नही है.
पर हाँ, अन्ना यही कह रहे है के मैं राजनीति मे आके अपनी छवि खराब नही कर सकता.
हम आज भी अन्ना की उतनी ही इज़्ज़त करते है जितनी आज से 1.5 साल पहले करते थे. और इस लेख को किसी भी और तरीके से ना लिया जाए.
लोकशाही की बात जब अन्ना के मुँह से पहली बार रामलीला मैदान मे 2011 के अगस्त मे सुनी तो लगा के हाँ यार, हमारी भी कुछ औकात है. वो कहते थे की जनता मालिक है और सरकार उसकी नौकर.
लोकशाही मे जो जनता कहती है उसे ही मानना पड़ता है. और फिर ये बात तो सभी से रूबरू है के एक समान समाज मे जैसा भी बहुमत कहता है, अगर वो सही है तो वैसा ही होना चाहिए. देश का एक अच्छा ख़ासा तबका चाहता है के अच्छे व्यक्तित्व वाले लोगों को राजनीति मे आना चाहिए. इसमे कोई बुरी बात भी नही है.
तो अगर जनता माँग कर रही है के अन्ना को राजनीतिक दल का गठन करना चाहिए, तो क्यूँ वो लोकशाही की दुहाई देने वाला बंदा अब लोकशाही का गला घोंट रहा है.
मौजूदा दौर मे हमारे पास जितने भी राजनीतिक दल है, उसमे हम मानते है के की अच्छे नेता भी है, परंतु बहुमत खराब लोगों का है जो सिर्फ़ मैं के बारे मे ही सोचते है, जबकि जन प्रतिनिधि होने के नाते उन्हे ज़रूरत है हम के बारे मे सोचने की. पिछले आम चुनाव मे 60 % से भी कम मतदान हुआ था. जबकि देश बनाने मे 100 फीसदी लोगों की ज़रूरत होती है. अब वो 40 फीसद से बात करो तो उनका कहना होता है के "यार क्या फ़ायदा, ये आए चाहे वो, दोनो ने हमे ही नचाना है, हम तो फूटबाल के खेल मे उस गेंद की तरह है जो चाहे कितना भी उपर उछल जाए, मारा उसे पैरो से ही जाना है."
भारत बनाम भ्रष्टाचार (इंडिया अगेन्स्ट करप्षन) ने जब आम जनता से पूछा के उन्हे एक राजनीतिक दल बनाना चाहिए या नही तो ७६ फीसदी लोगों ने कहा हाँ. उनकी हाँ का मतलब ये नही हो सकता के भाई तुम राजनीतिक पार्टी बनाओ और हम तुम्हे मतदान ना करके तुम्हे हरा देंगे.
ऐसे मे अन्ना अगर एक राजनीतिक दल बना कर उस जनता को ऐक विकल्प दे देंगे तो हो सकता है के शायद पिछले 65 सालो से लोगो के दिमाग़ पर हमले करके उन्हे जो बताया गया है के इस देश मे किसी का कुछ नही हो सकता, उनके मन भी मानने को तैयार हो जाए के हाँ शायद कुछ तो हो सकता है.
अब अन्ना इस ज़िद पर है के मैं अपनी छवि खराब नही कर सकता. तो यहाँ पे अन्ना से एक सवाल पूछने को दिल चाहता है के क्या अन्ना अपनी इक्लोते की छवि के पीछे सारे देश की छवि को खराब होने दे सकते है? क्या वो इतने निर्दय हो गये है?
क्या उन्हे गलिओ मे फटे कपड़े पहने वो छोटे छोटे बच्चे नही दिखते जो रोटी के एक टुकड़े के लिए ना जाने कितनो के आगे हाथ फैलाते है! क्या केवल जनलोकपाल आ जाने से ये सब ठीक हो जाएगा? क्या उन्हे मा-बाप की लाडली माने जाने वाली बेटिओ के हालत नही दिखते, जो अभिशाप मान कर जन्म लेने से पहले या बाद मे मार दी जाती है? क्या केवल जनलोकपाल आ जाने से ये सब ठीक हो जाएगा? क्या उन्हे बम धमाको मे मारे गये उस नौजवान लड़के के माँ-बाप के आँसू नही दिखते, जो रह रह कर अपनी किस्मत को कोन्स्ते है? क्या केवल जनलोकपाल आ जाने से ये सब ठीक हो जाएगा? क्या उन्हे फंदे से लटकते और कुएँ मे कूदते वो किसान नही दिखते, जो केवल इस लिए जान देने पर मजबूर हो गये की सरकार ने उन्हे उनका मेहनताना नही दिया? क्या केवल जनलोकपाल आ जाने से ये सब ठीक हो जाएगा? क्या उन्हे सरहद पर खड़े उस जवान की आँखो की चमक नही दिखती, जो सोचती है के देश को बाहर वालो से मैं रक्षा कर रहा हूँ और अंदर वालो से अन्ना? क्या केवल जनलोकपाल आ जाने से ये सब ठीक हो जाएगा? हाँ शायद हो भी जाए, आज से २५ साल बाद. मतलब भारत की एक और नस्ल अभी इस भ्रष्टाचार को सहेगी. अन्ना ने अपनी रहें जुड़ा कर ली है पर उनके आदर्श युवा दिलो मे खून की तरह हमेशा दौड़ते रहेंगे. अन्ना के वह ५ विचार जो किसी भी जीवन को सफल बनाने का माद्दा रखते है:
१. शुद्ध आचार
२. शुद्ध विचार
३. अपमान सहने की शक्ति.
४. निष्कलंक जीवन
५. त्याग
अब सवाल ये बनता है के क्या अन्ना को कभी अपनी इस सबसे बड़ी ग़लती का एहसास होगा?
पर उससे भी बड़ा सवाल है के क्या इतिहास कभी अन्ना को माफ़ कर पाएगा?
अरविंद के लिए ४ पंक्तियाँ कहता हूँ के:
राजनीति नही अब रण होगा
देश पर मर मिटने का प्रण होगा
वो लड़ाई होगी की काले अंग्रेज याद रखेंगे
प्रमाण इसका धरती का कण-कण होगा