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Monday, November 19, 2012

Arvind Kejriwal – हमारे नेताजी



अरविंद केजरीवाल – हमारे नेताजी
अगर मुद्दे मे दम लगे तो इसे साझा करना ना भूले और कृपा करके इस लेख को किसी की भी खिलाफत ना मान कर मेरी निजी राय माना जाये.
पता नहीं इस आंदोलन मे सब अरविंद केजरीवाल को ही क्यों पूछ्ते है? अखबार उठाओ तो उनके बारे मे लिखा होगा, बुद्धु डब्बा चलाओ तो उनके साक्षात्कार आ रहे है, किसी नये मुद्दे का पर्चा आए तो लिखा होता है “आपका अरविंद केजरीवाल”. इस लेख के द्वारा मैं इस बाबत चर्चा करना चाहूंगा के क्या एक आदमी पर इतनी निर्भरता ठीक है या क्या केवल एक ही आदमी को हर जगह आगे करना या पूरे आंदोलन का चेहरा बना देना एक न्यायपूर्ण स्थिति है?
सबसे पहला तथ्य मैं यहां पर यह रखना चाहूंगा के १९७५ के दौर मे जो तख्तापलट की लड़ाई चल रही थी उसमे भी एक ही चेहरा सामने दिखता था, जय प्रकाश नारायण, जिसने खुद को तो सत्ता से दूर रखा लेकिन सब लोगों के मार्गदर्शक बने रहे. पर जैसे ही उनका देहांत हुआ, अच्छी खासी बनी बनाई सरकार गिर गई और फिर से भारत देश की बागडोर उसी दल के हाथ मे चली गई जिसके मार्गदर्शक मोहनदास गांधी ने आज़ादी मिलते ही उस दल को खत्म करने की बात कही थी।
इसी कड़ी मे आप बात सुभाष चन्द्र बोस की भी कर सकते है जिन्होंने बखूबी अंग्रेज़ो के दांत अपनी आज़ाद हिंद फौज के द्वारा खट्टे किये थे पर उनके बाद उस फौज का सेनापति कोई नही था जिसका परिणाम हम सब जानते है। बेड़ा गर्क पार्टी क्यूँ टिकी हुई है क्यूँकि उनके पास चाचाजी का विकल्प दादीजी थी, दादीजी का विकल्प बेटाजी थे और बेटाजी का विकल्प बहूजी। कल को भगवान भला करे और बहूजी को कुछ हो जाए तो उनका विकल्प तो सचिन तेंदुलकर है ही। अब तो सुना है के भांजेजी को भी अभी से तैयार किया जा रहा है।
अब मैं ये नही कह रहा की सारा केजरीवाल परिवार ही देश सेवा मे कूद पड़े पर, यहां पर मेरा यह कहना है एक ही आदमी पर निर्भर होना बहुत ठीक बात नही है और अरविंद के संगठन को, अगर वो सही में देश का कुछ भला करना चाहते है तो, कोशिश करनी चाहिए के वो अपने जैसे लोगों को हर लोक सभा स्तर पर, हर विधान सभा स्तर पर और नगर पालिका वार्ड स्तर पर खोजें। अब यहाँ पर उनसे जुड़े हुए लोग ये कह सकते है के ऐसी मेहनत पहले से ही चल रही है पर क्युंकि मैं भी अन्ना अरविंद की इन मुहिमों से निरतंर जुड़ा हुआ हूँ तो मैं ये कह सकता हूँ कि अभी जो काम चल रहा है वो हर स्तर पर अपने आने वाले नए राजनीतिक दल की तैय्यारीओं को लेकर चल रहा है, इसमे कहीं भी स्तरीय नेता खोजने की बात नहीं है, अभी का हर फैसला सिर्फ अरविंद के हाथों मे ही होता है। अभी हर स्तर पर अरविंद का समूह बनाने की तैयारी हो रही है, अरविंद बनाने की नहीं।
दूसरी बात ये कि अरविंद जो बात करते है कि हमारे दल मे आलाकमान कोई नहीं होगा, हर इलाके को उसके फैसले खुद करने का हक़ होगा। तो क्या इसके लिए ज़रुरत नही है स्तरीय नेताओं को खोज निकालने की जो अपनी स्तरीय समस्याओं और ज़रुरतों को समझ के अपने क्शेत्र से जुड़े लोगों का उनके तरीके से नेतृत्व कर सके और वो भी बिना अरविंद केजरीवाल से पूछे।
अब हर स्तर पर जो अरविंद केजरीवाल बनेंगें तो उससे मुख्य समूह (गाज़ियाबाद वाला) जो इस वक़्त पूरे देश की अगुवाई मे लगा है उसकी छवि तो थोड़ी धुंधली होगी पर भारत के लिए जो सपना वो लोग देख रहे उसे पूरा करने मे खूब बल मिलेग। हाँ, सुपरवाइसरी का अधिकार वो अपने पास सुरक्षित रख सकते है।
समस्याऐं और भी है जो मैं यहाँ पर देख सकता हूँ, उनमे सबसे महत्वपूर्ण है अरविंद की सुरक्शा जिसे वो आए दिन ललकारते रहते है, इसके बारे भी उन्हे वर्तमान समय मे सोचने की ज़रुरत है, आने वाले समय मे वो राजनीतीग्यों की सुरक्षा को लेकर वो क्या इंतज़ाम करने वाले है वो उस समय के हालातों के हिसाब से ज़रूर ठीक होगा पर आज की स्थिति मे वो जचता नही है। 
बाकी आप लोग खुद ही खूब समझदार है, सोच लिजिये किस तरह का भारत आप चाहते है और उसके लिए आपके किन प्रयासों की ज़रुरत पड़ेगी।
सोचते रहिए। जय इंसान, जय हिंदुस्तान।

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