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Thursday, November 22, 2012

Kasaab ki maut - कसाब की मौत

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२६ नवंबर २००८, एक बुधवार
२१ नवंबर २०१२, एक और बुधवार
ये मच्छर सही मे बहुत आलसी होते है। सालो ने 155 हफ्ते लगा दिये सही बंदा खोजने मे।
आज जो हुआ उससे मेरा मन अति प्रफुल्लित है मैं ऐसा तो नहीं कहुंगा क्योंकि १५० परिवारों की ज़िंदगी खराब करके 

अगर मौत मिल भी गयी तो क्या है?
उसे एक राष्ट्रीय धरोहर की तरह सम्भाल के रखने वाली मेरी सरकार के मन मे ना जाने क्या निकलवाने चाह थी उस चूज़े से के उसने कई करोड़ रुपये लुटा दिए जो कि सही मायने मे हमारे हक़ के थे।

पर मैं वारी वारी जाऊं उस परम पूजनीय श्री श्री 1008 मच्छर खान पे जिसने मेरी जेब से निकलने वाले और पैसे को बचा लिये। इस मच्छर के लिये तो मेरा कह्ने का मन कर रहा है "मैं भी मच्छर, तू भी मच्छर, अब तो सारा देश है मच्छर"
अब कईओं के मन मे सवाल आयेगा के सरकार ने तो फांसी दी है तो सब डेंगू से मौत क्यूं कह रहे है। पूरी तरह से आश्वस्त तो मैं भी नही हूँ किसी एक को लेके पर इस धोखेबाज़ सरकार पर विश्वास करने का मन नही कर रहा इसीलिए मैं डेंगू वाली बात को ही सच मान रहा हूँ जिसके लिये मैं यहाँ कुछ बातें रखता हूँ:
१. सबसे पह्ला तो ये कि कसाब के वकील ने भी कहा के उसे तक को कसाब का डेथ वारंट नही दिया गय, जो की आप भारतीय दंड सन्हिता के मुताबिक कर नही सकते।
२. दूसरा यह के उसके खाने पीने और मूतने हगने तक की खबरें जब मीडीया मे आ सकती है तो उसकी फांसी की सज़ा को कोई कैसे छुपा सकता है।
३. तीसरा शक यह है के अभी तक जो सरकार कसाब के मुद्दे पे मुँह तक नही खोलती थी उसने ईतनी जल्दी ये सब कैसे और क्यों किया।
बाकी आप लोग खुद् ही समझदार है। खोद डालिये सच्चाई को।
वैसे मैं तो अब से बुधवार के व्रत रखना शुरू करने वाला हूँ।
जय इंसान, जय हिंदुस्तान

Monday, November 19, 2012

Arvind Kejriwal – हमारे नेताजी



अरविंद केजरीवाल – हमारे नेताजी
अगर मुद्दे मे दम लगे तो इसे साझा करना ना भूले और कृपा करके इस लेख को किसी की भी खिलाफत ना मान कर मेरी निजी राय माना जाये.
पता नहीं इस आंदोलन मे सब अरविंद केजरीवाल को ही क्यों पूछ्ते है? अखबार उठाओ तो उनके बारे मे लिखा होगा, बुद्धु डब्बा चलाओ तो उनके साक्षात्कार आ रहे है, किसी नये मुद्दे का पर्चा आए तो लिखा होता है “आपका अरविंद केजरीवाल”. इस लेख के द्वारा मैं इस बाबत चर्चा करना चाहूंगा के क्या एक आदमी पर इतनी निर्भरता ठीक है या क्या केवल एक ही आदमी को हर जगह आगे करना या पूरे आंदोलन का चेहरा बना देना एक न्यायपूर्ण स्थिति है?
सबसे पहला तथ्य मैं यहां पर यह रखना चाहूंगा के १९७५ के दौर मे जो तख्तापलट की लड़ाई चल रही थी उसमे भी एक ही चेहरा सामने दिखता था, जय प्रकाश नारायण, जिसने खुद को तो सत्ता से दूर रखा लेकिन सब लोगों के मार्गदर्शक बने रहे. पर जैसे ही उनका देहांत हुआ, अच्छी खासी बनी बनाई सरकार गिर गई और फिर से भारत देश की बागडोर उसी दल के हाथ मे चली गई जिसके मार्गदर्शक मोहनदास गांधी ने आज़ादी मिलते ही उस दल को खत्म करने की बात कही थी।
इसी कड़ी मे आप बात सुभाष चन्द्र बोस की भी कर सकते है जिन्होंने बखूबी अंग्रेज़ो के दांत अपनी आज़ाद हिंद फौज के द्वारा खट्टे किये थे पर उनके बाद उस फौज का सेनापति कोई नही था जिसका परिणाम हम सब जानते है। बेड़ा गर्क पार्टी क्यूँ टिकी हुई है क्यूँकि उनके पास चाचाजी का विकल्प दादीजी थी, दादीजी का विकल्प बेटाजी थे और बेटाजी का विकल्प बहूजी। कल को भगवान भला करे और बहूजी को कुछ हो जाए तो उनका विकल्प तो सचिन तेंदुलकर है ही। अब तो सुना है के भांजेजी को भी अभी से तैयार किया जा रहा है।
अब मैं ये नही कह रहा की सारा केजरीवाल परिवार ही देश सेवा मे कूद पड़े पर, यहां पर मेरा यह कहना है एक ही आदमी पर निर्भर होना बहुत ठीक बात नही है और अरविंद के संगठन को, अगर वो सही में देश का कुछ भला करना चाहते है तो, कोशिश करनी चाहिए के वो अपने जैसे लोगों को हर लोक सभा स्तर पर, हर विधान सभा स्तर पर और नगर पालिका वार्ड स्तर पर खोजें। अब यहाँ पर उनसे जुड़े हुए लोग ये कह सकते है के ऐसी मेहनत पहले से ही चल रही है पर क्युंकि मैं भी अन्ना अरविंद की इन मुहिमों से निरतंर जुड़ा हुआ हूँ तो मैं ये कह सकता हूँ कि अभी जो काम चल रहा है वो हर स्तर पर अपने आने वाले नए राजनीतिक दल की तैय्यारीओं को लेकर चल रहा है, इसमे कहीं भी स्तरीय नेता खोजने की बात नहीं है, अभी का हर फैसला सिर्फ अरविंद के हाथों मे ही होता है। अभी हर स्तर पर अरविंद का समूह बनाने की तैयारी हो रही है, अरविंद बनाने की नहीं।
दूसरी बात ये कि अरविंद जो बात करते है कि हमारे दल मे आलाकमान कोई नहीं होगा, हर इलाके को उसके फैसले खुद करने का हक़ होगा। तो क्या इसके लिए ज़रुरत नही है स्तरीय नेताओं को खोज निकालने की जो अपनी स्तरीय समस्याओं और ज़रुरतों को समझ के अपने क्शेत्र से जुड़े लोगों का उनके तरीके से नेतृत्व कर सके और वो भी बिना अरविंद केजरीवाल से पूछे।
अब हर स्तर पर जो अरविंद केजरीवाल बनेंगें तो उससे मुख्य समूह (गाज़ियाबाद वाला) जो इस वक़्त पूरे देश की अगुवाई मे लगा है उसकी छवि तो थोड़ी धुंधली होगी पर भारत के लिए जो सपना वो लोग देख रहे उसे पूरा करने मे खूब बल मिलेग। हाँ, सुपरवाइसरी का अधिकार वो अपने पास सुरक्षित रख सकते है।
समस्याऐं और भी है जो मैं यहाँ पर देख सकता हूँ, उनमे सबसे महत्वपूर्ण है अरविंद की सुरक्शा जिसे वो आए दिन ललकारते रहते है, इसके बारे भी उन्हे वर्तमान समय मे सोचने की ज़रुरत है, आने वाले समय मे वो राजनीतीग्यों की सुरक्षा को लेकर वो क्या इंतज़ाम करने वाले है वो उस समय के हालातों के हिसाब से ज़रूर ठीक होगा पर आज की स्थिति मे वो जचता नही है। 
बाकी आप लोग खुद ही खूब समझदार है, सोच लिजिये किस तरह का भारत आप चाहते है और उसके लिए आपके किन प्रयासों की ज़रुरत पड़ेगी।
सोचते रहिए। जय इंसान, जय हिंदुस्तान।

Thursday, November 15, 2012

Amitabh Bachchan - सच



अमिताभ बच्चन जैसा होना चाहिये इंसान को, सब से बना के रखने वाला, कांग्रेस को भी अपने जन्मदिन पर बुलाता है, अमर सिंघ से भी जेल मे मिलने जाता है, मुकेश अंबानी की दावतों मे भी शरीक होता है, विलास राव देशमुख गुज़रते है तो शोक व्यक्त करते है, ठाकरे बीमार होते है तो उनसे भी उनके घर तक मिलने जाता है और चोट भी खाता है। दीवार, खाकी, लक्ष्य जैसी पिक्चर बनाता है ताकि लोगों मे थोड़ी देशभक्ति जागे। अपनी हर पिक्चर के बाद जनता का धन्यवाद भी करता है।
पर वही जनता जब अपनी परेशानी को लेकर सड़कों पर आती है, तब ये साहब कुछ भी नही बोलते, कोई मंत्री घोटाला करता है तो इनका ट्विटर का पंछी हवा मे उड़ जाता है, लोग भूखे बैठते है तब ये पोते पोतियाँ खिला रहे होते है, अरे ये सच्ची मे बहुत बड़ा महानायक है भाईओं जो हमारे सामने ही ये सब करता है और हमे कुछ पता नही चलता।



क्यूँ उनका नाम बोफोर्स घोटाले मे भी आता है, क्यूँ वो सिर्फ ऐसे सामाजिक कार्यों मे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते है जहाँ से समाज का कुछ खास भला नहीं होने वाल, क्यूँ वो अपने समर्थकों और प्रशंसकों से नही कह्ते की वो भष्टाचार का विरोध करे, क्यूँ वो विदभ्र मे मर रहे किसानो के बारे मे मौन रह्ते है।
मुझे कुछ खास झट्का नही लगेगा अगर कल को अरविंद केजरीवाल के किसी खूलासे मे बड़े बाऊजी का नाम भी आ जाये।
मुझे पता है के मेरी इन बातों किसी को कुछ फर्क नही पड़ेगा पर फिर भी मैं इस महान देश के सभी महान एवं प्रतिष्ठित लोगो से विनती करना चाहूंगा के सिर्फ महान और खास लोगों की बातें छोड़ कर आम लोगों पर भी थोड़ा ध्यान दें और देश की बातें करें।
वैसे दीवार और लक्ष्य दोनो पिक्चरें थी बहुत बढिया।
अगली बार मैं सचिन तेंदुल्कर के बारे मे लिखूंगा।
जय इंसान, जय हिंदस्तान