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Wednesday, July 4, 2012

Hothon par ganga ho,Hathon me tiranga ho-होठों पर गंगा हो,हाथों मे तिरंगा हो



यह कविता एक ऐसी है जो किसी भी दिल मे एक जुनून पैदा कर सकती है
देश पर मरने का जुनून,कुछ कर गुज़रने का जुनून
यह कविता डा. कुमार विश्वास ने आज से कई वर्ष पहले लिखी थी और मैने केवल इसके आख़िर मे कुछ पंक्तियाँ जोड़ी है(जो हरे रंग मे नज़र आती है) जो की पूरी तरह से मेरे देश और मेरे गुरुजी डा. कुमार विश्वास को समर्पित है.




शोहरत ना अता करना मौला,दौलत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे,जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों मे तिरंगा हो

बस एक सदा ही उठे सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं मैं
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते तपते सहराओं मैं
जीते जी इसका मान रखे, मारकर मर्यादा याद रहे
हम रहे कभी ना रहे मगर, इसकी सज धज आबाद रहे
गोधरा ना हो, गुजरात ना हो, इंसान ना नंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों मैं तिरंगा हो.

गीता का ज्ञान सुने ना सुने
इस धरती का यश्गान सुने
हम शबद कीर्तन सुन ना सके
भारत माँ का जय गान सुने
परवरदिगार मैं तेरे द्वार
कर लो पुकार ये कहता हूँ
चाहे अज़ान ना सुने कान पर जय जय हिन्दुस्तान सुने
जन मन मे उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो
हाथों मे तिरंगा हो


जीना भी हो मरना भी हो तेरी मिट्टी की खुशबू में
हँसना भी हो रोना भी हो बस तेरे प्यार के जादू में
उस खुदा से हरदम रहे दुआ
तू खुश रहे चाहे मुझे कुछ भी हुआ
तेरी धरती अंबर से प्यारी है
समुंद्र ही लागे तेरा हर इक कुआँ
बहुत सह चुके अब और ना सहे
अब सब कुछ चंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों मैं तिरंगा हो.

कुछ माँगा नही सब पाया है धरती माँ तेरे आँचल से
सुंदरता और सुरक्षा भी मिली हे भारती तेरे हिमाचल से
एक दूसरे को अब माने भाई 
चाहे हिंदू मुस्लिम हो सिख या ईसाई
एक दूसरे के लिए भी लड़े अब
और आपस मे ना करे लड़ाई
धर्म एक हो इक ही जात हो
और ना कोई दंगा हो
होठों पर गंगा हो
हाथों मे तिरंगा हो